Wednesday 11 November 2015

दीपावली कविता

उम्मीद के दीये


बुझते आशाओं के पग पर 
जलते उम्मीदों के दिए 

कुछ जले अपने खातिर 
कुछ औंरों  के लिए 

छोड़ अंदर का दामन 
हम सूरज की और चल दिए 

इस तरह दिल मैं अपने 
जल उठे ख़ुशी के दीये 
-स्वाति शर्मा 




शब्द दीप !




दीप जलाये मनोभाव के 
सौ-सौ लड़ियों वाले दीप 
अनगिन खुशियों वाले दीप। 

एक दीप उस द्वार भी जले 
खुले जो रहा कई बरस 
रौशनी को जो रहा तरस। 

एक दीप उन दीवारो पर 
जो पपड़िली रुखड़ी सी हैं 
घोर तामस में उखड सी हैं। 

दीप धरो उन ताखे पर भी 
जिस पर माँ की मूरत है 
कितनी खूबसूरत है। 


दीप जलाओ ओसारे में 
बाबा जिसमें रहते थे 
जुग-जुग  जियो कहते थे। 


दीप जले तुलसी चौरे पर 
देती नित आशीष हमें 
खुशियों की बख्शीश हमें। 

एक दीया उस देहरी आर धार 
राह तक राह परदेशी का 
दिन लौटे उस घर में ख़ुशी का। 

एक दिया कवि के चरणों में 
जिसकी कृतियाँ थाती हैं 
सच की राह दिखती हैं। 


दिया एक उन चौबारों पर  
जो अतीत की गाथा कहते है 
वर्तमान की घाते  सहते। 

एक दीप उन के मंदिर में 
क्लेश द्वेष सब दूर करें 
नेह छोह के भाव भरें। 
-अभिनव अरुण 

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1 comment:

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