दोस्तों आज में आपके लिए ऐसी पोस्ट लाया हूं जो मेरी ही तरह आपके दिल को भी छूयेगी .
जिंदगी के पांच सच
सच नं. 1 -:
माँ के सिवा कोई सकता नहीं हो सकता .......!!!!!
सच नं. 2 :-
गरीब का कोई सकता !!!
सच नं. 3 :-
आज भी लोग अच्छी सोच को नहीं ,
अच्छी सूरत को तरजीह देते है ……!!
सच नं. 4 :-
इज्जत सिर्फ पैसे की है इंसान की नहीं …!!!
सच नं. 5 :-
जिस शख्स को अपना खास समझो वाही दुःख दर्द देता है ………!!!
पहली बार दोस्तों इस गजल को पढ़ कर आंसू आ गये
शख्सियत ए लख्ते जिगर खला न सका .
जन्नत के धनि "पैर" कभी शाला ना सका .
दूध पिलाया उसने छाती से निचोड़कर, मैं निकम्मा कभी एक गिलास पानी पिला ना सका .
बुढ़ापे का "सहारा" हूँ ये अहसास दिला न सका पेट पर सुलाने वाली को "मखमल " पर सुला न सका .
वो भूखी सो गयी बहु के डर से एकबार मांगकर मैं "सुकून के दो निवाले उसे खिला ना सका .
नजरे उस बूढ़ी "आँखों" से कभी मिला ना सका .
वो दर्द सहती रही में मैं खटिया पर तिलमिला न सका.
जो हर रोज ममता के रंग पहनाती रही मुझे,उसे दीवाली पर दो जोड़ कपडे सिला न सका .
बीमार बिस्तर से उसे 'शिफ़ा दिल ना सका .
खर्च के दर से उसे बड़े अस्पताल ले जा न सका .
माँ के बेटा कहकर "दम " तोड़ने बाद से अब तक सोच रहा हूँ ,दवाई इतनी "महंगी" न थी के मैं ला ना सका.
जिंदगी के पांच सच
सच नं. 1 -:
माँ के सिवा कोई सकता नहीं हो सकता .......!!!!!
सच नं. 2 :-
गरीब का कोई सकता !!!
सच नं. 3 :-
आज भी लोग अच्छी सोच को नहीं ,
अच्छी सूरत को तरजीह देते है ……!!
सच नं. 4 :-
इज्जत सिर्फ पैसे की है इंसान की नहीं …!!!
सच नं. 5 :-
जिस शख्स को अपना खास समझो वाही दुःख दर्द देता है ………!!!
पहली बार दोस्तों इस गजल को पढ़ कर आंसू आ गये
शख्सियत ए लख्ते जिगर खला न सका .
जन्नत के धनि "पैर" कभी शाला ना सका .
दूध पिलाया उसने छाती से निचोड़कर, मैं निकम्मा कभी एक गिलास पानी पिला ना सका .
बुढ़ापे का "सहारा" हूँ ये अहसास दिला न सका पेट पर सुलाने वाली को "मखमल " पर सुला न सका .
वो भूखी सो गयी बहु के डर से एकबार मांगकर मैं "सुकून के दो निवाले उसे खिला ना सका .
नजरे उस बूढ़ी "आँखों" से कभी मिला ना सका .
वो दर्द सहती रही में मैं खटिया पर तिलमिला न सका.
जो हर रोज ममता के रंग पहनाती रही मुझे,उसे दीवाली पर दो जोड़ कपडे सिला न सका .
बीमार बिस्तर से उसे 'शिफ़ा दिल ना सका .
खर्च के दर से उसे बड़े अस्पताल ले जा न सका .
माँ के बेटा कहकर "दम " तोड़ने बाद से अब तक सोच रहा हूँ ,दवाई इतनी "महंगी" न थी के मैं ला ना सका.
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